डॉ. जे.पी. सिंह

डॉ. जे.पी. सिंह

भारत के पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी कृषि योग्य भूमि है और पूरे विश्व में कृषि उत्पादन में दूसरा स्थान है। भारत की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या जीवनयापन के लिए कृषि पर निर्भर है और वर्ष 2021-22 के दौरान वर्तमान मूल्यों पर भारत के सकल मूल्य संवर्धन में इसका लगभग 18.8 प्रतिशत का योगदान रहा है। भारत विश्व में केला, आम, अमरूद, पपीता, नींबू, भिण्डी, मिर्च, अदरक और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत दालों का भी सबसे बड़ा उत्पादक है और गेहूँ एवं चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारतीय कृषि न केवल अपनी जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा की आवश्यकताओं की पूर्ति कर रही है अपितु अनेक कृषि आधारित उद्योगों को भी सहयोग प्रदान कर रही है।

वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय (डी.पी.पी.क्यू .एस.) की स्थापना ब्रिटिश इंडिया सरकार द्वारा वर्ष 1943 के बंगाल के अकाल की जांच करने के लिए वर्ष 1944 में नियुक्त वुडहैड कमीशन की सिफारिश पर वर्ष 1946 में की गई थी। निदेशालय का मुख्य उद्देश्य वनस्पति संरक्षण से संबंधित सभी मामलों पर संघ सरकार एवं राज्य सरकारों को परामर्श प्रदान करना है।


निदेशालय अपने विभिन्न‍ प्रभागों जैसे एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, वनस्पति संगरोध, कीटनाशक पंजीकरण, कीटनाशक गुणवत्ता नियंत्रण, टिड्डी नियंत्रण एवं अनुसंधान, कीटनाशक निगरानी एवं प्रलेखन आदि को सौंपे गए विशिष्ट उद्देश्यों के प्रभावी क्रियान्वयन के माध्यम से कार्य कर रहा है।


भारत के पास अपनी जैव सुरक्षा के संरक्षण और दीर्घकालिक खाद्य उत्पादन को प्राप्त करने हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, राज्यों एवं संघ राज्यों क्षेत्रों के कृषि विभागों, गैर-सरकारी संगठनों, अधिकृत प्राइवेट कर्मियों इत्यादि अंतःशासकीय संगठनों का सबसे बड़ा वनस्पति संरक्षण नेटवर्क है।


निदेशालय विशिष्ट फसलों एवं कीटों पर कृषि पारिस्थितिकी तन्त्र विश्लेषण आधारित एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन के लिए अनुप्रयोग पैकेज,कीटनाशक पंजीकरण, निगरानी एवं परीक्षण प्रोटोकॉल, पादप-स्वच्छता उपचार, निरीक्षण एवं प्रमाणीकरण, नाशीजीव मुक्त क्षेत्रों (पी.एफ.ए) से संबंधित मानक प्रचालन एवं राष्ट्रीय मानकों को तैयार करता है और वेबसाइट पर अपलोड करके इन्हें सभी हितधारकों को उपलब्ध कराता है। निदेशालय कीटनाशी पंजीकरण प्रमाणपत्रों एवं पादप स्वच्छता प्रमाणपत्रों को ऑनलाइन जारी करते हुए डिजिटल इंडिया को क्रियान्वित कर रहा है।


भारतीय जैव विविधता को विदेशी नाशीजीवों से बचाने के लिए नाशक कीट और नाशक जीव अधिनियम (डी.आई.पी.एक्ट ), 1914 के तहत जारी वनस्पति संगरोध (भारत में आयात का विनियमन) आदेश, 2003 को लागू किया गया है। भारत अंतर्राष्ट्रीय वनस्पति संरक्षण समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला सदस्य देश है। वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय भारत का राष्ट्रीय वनस्पति संरक्षण संगठन है। यह कृषि वस्तुओं के निर्यात हेतु विदेशी बाजार में पहुंच बनाने के लिए सुरक्षित कारोबार को बढ़ावा देने की दृष्टि से तकनीकी जानकारी प्रदान करके, पादप-स्वच्छता निरीक्षण,उपचार, प्रमाणन आदि कार्य करके पादप-स्वच्छता संबंधी अपनी समस्त जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहा है।


निदेशालय अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र में रेगिस्तानी टिड्डी के नियंत्रण के लिए विभिन्न राज्यों से सहयोग करके निगरानी का कार्य करता रहता है और पूर्व चेतावनी जारी करता है और इन पर नियंत्रण की कार्रवाई करता है। इसके अलावा यह टिड्डी एवं टिड्डों पर शोध कार्य भी करता है और देश में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन पर विभिन्न मानव संसाधन विकास कार्यक्रम चलाता है। निदेशालय, कीटनाशक अधिनियम 1968 और कीटनाशक नियम 1971 के क्रियान्वयन के माध्यम से भारतीय किसानों को सुरक्षित, गुणवत्तायुक्त एवं प्रभावी कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है। यह कृषि पारिस्थितिकी विश्लेेषण आधारित एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन पर किसानों, कृषि विस्तार कार्यकर्ताओं और कृषि सामग्री के डीलरों को प्रशिक्षण प्रदान करके वनस्पति संरक्षण प्रौद्योगिकी में मानव-संसाधन विकास का कार्य कर रहा है और वैकल्पिक प्रबंधन जैसे परम्परागत, जैविक, यांत्रिक उपायों को बढ़ावा देता है तथा पंजीकरण समिति द्वारा अनुमोदित कीटनाशकों के सुरक्षित एवं विवेकपूर्ण प्रयोग को बढ़ावा देता है। यह वनस्पति संरक्षण से संबंधित मुद्दों पर राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न संगठनों के साथ समन्वित प्रयास करने के अतिरिक्त किसी भी संभावित नाशीजीव महामारी से बचने के लिए महत्वपूर्ण फसलों में नाशीजीव की उपस्थिति पर निगरानी रखता है और एडवाइजरी तथा पूर्व-चेतावनी जारी करता है।


निदेशालय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और राज्यों के साथ मिलकर नाशीजीवों का शीघ्रता से पता लगाने की प्रक्रिया को मजबूत करने, प्रभावी वनस्पति संरक्षण उपायों की उपलब्धता सुनिश्चित करने, मानव संसाधन विकास और कृषि समुदाय एवं कृषि आधारित उद्योगों के हित में नाशीजीवों से होने वाली फसलों की हानि को कम से कम करने के लिए अद्यतन सूचना प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग कर रहा है। निदेशालय प्रभावी पादप-स्वच्छता प्रमाण-पत्र प्रणाली के उपयोग, इलेक्ट्रानिक पादप-स्वच्छता प्रमाण-पत्र जारी करने, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पादप-स्वच्छता निरीक्षण सुविधाओं को उन्नत बनाने के माध्यम से तथा पैक हाउसों और प्रोसेसिंग यूनिटों को मान्य‍ता प्रदान करके नाशीजीवमुक्त कृषि निर्यात की सुविधा प्रदान कर रहा है और किसानों की आय दुगुनी करने, मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम, रोजगार-सृजन, कृषि निर्यात को बढ़ावा देने, डिजिटल इंडिया, कारोबार को सुगम बनाने और जीवन सुगम बनाने जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।


( डॉ. जे.पी. सिंह )
वनस्‍पति संरक्षण सलाहकार


1946 से आज तक वनस्‍पति संरक्षण सलाहकारों की सूची