रेगिस्तानी टिड्डी का आक्रमण सामान्यतया प्लेग चक्र के प्रारंभिक चरणों में होता है (टिड्डियों के व्याापक प्रजनन, झुंड बनाना और उससे फसलों को होने वाली क्षति की लगातार दो वर्ष से अधिक अवधि को प्लेग अवधि कहते हैं) और उसके बाद 1 से 8 वर्ष की बहुत कम टिड्डी गतिविधियों को टिड्डी प्रकोपमुक्त अवधि कहते हैं जिसके बाद फिर से अगली प्लेग अवधि आती है। भारत ने पिछली दो शताब्दियों के दौरान निम्नानुसार कई टिड्डी प्लेग और उतार-चढ़ाव देखे हैं:-
विभिन्न वर्षों के दौरान पाया गया टिड्डी प्लेग
निम्नलिखित वर्षों के दौरान टिड्डी प्लेग पाया गया | |
1812-1821 | 1900-1907 |
1843-1844 | 1912-1920 |
1863-1867 | 1926-1930 |
1869-1873 | 1940-1946 |
1876-1881 | 1949-1955 |
1889-1891 | 1959-1962 |
विभिन्न वर्षों के दौरान पाए गए टिड्डी उतार-चढ़ाव
पाए गए टिड्डी उतार-चढ़ाव | |
वर्ष | टिड्डी झुंडों के आक्रमणों की संख्या |
---|---|
1964 | 004 |
1968 | 167 |
1970 | 002 |
1973 | 006 |
1974 | 006 |
1975 | 019 |
1976 | 002 |
1978 | 020 |
1983 | 026 |
1986 | 003 |
1989 | 015 |
1993 | 172 |
1997 | 004 |
2019 | 276 |
2020 | 103 |
वर्ष 1998, 2002, 2005 , 2007 और 2010 के दौरान छोटे स्तर पर भी स्थानीय टिड्डी के प्रजनन की सूचना मिली थी जिस पर नियंत्रण कर लिया गया। वर्ष 2010 से 2018 तक स्थिति नियंत्रण में रही और बड़े स्तर पर टिड्डी के प्रजनन और उनके झुंडों की कोई सूचना नहीं प्राप्त हुई। तथापि, राजस्थान और गुजरात राज्यों में कुछ स्थानों पर समय-समय पर नियमित टिड्डी सर्वेक्षण के दौरान रेगिस्तानी टिड्डी के कहीं-कहीं पर मौजूद होने की सूचना प्राप्त हुई है।